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बिलासपुर:
अविभाजित मध्यप्रदेश के दौरान छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में जल संसाधन विभाग के मुख्य अभियंता कार्यालय, महानदी कछार में ट्रेसर के पद पर कार्यरत अब्दुल रहमान अहमद को 1991 में आनंद मार्ग से संबद्ध होने के आरोप में सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था।
मध्यप्रदेश राज्य प्रशासनिक अधिकरण (ट्रिब्यूनल) ने इस आदेश को रद्द करते हुए अब्दुल रहमान की सेवा में बहाली का आदेश दिया था। जल संसाधन विभाग ने ट्रिब्यूनल के फैसले को मानते हुए उनकी सेवा बहाल कर दी, परंतु 1991 से 1999 का वेतन और अन्य लाभ नहीं दिए। आठ साल के बकाया राशि के लिए अब्दुल रहमान ने पुनः ट्रिब्यूनल का रुख किया, परंतु इसी बीच छत्तीसगढ़ राज्य का निर्माण हो गया और मामला छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में स्थानांतरित हो गया।
25 साल के लंबे इंतजार के बाद, हाई कोर्ट ने इस मामले में फैसला सुनाया है, जिससे याचिकाकर्ता को आखिरकार राहत मिली है।
मध्यप्रदेश ट्रिब्यूनल में दायर किया था मामला
हाई कोर्ट के जस्टिस गौतम भादुड़ी ने अपने फैसले में कहा कि जब किसी सरकारी कर्मचारी की बर्खास्तगी या अनिवार्य सेवानिवृत्ति को हाई कोर्ट से रद्द कर दिया जाता है, तो उसे सेवा से बाहर होने की अवधि का पूरा वेतन, भत्ता और अन्य लाभ पाने का हकदार होता है। अब्दुल रहमान को आनंद मार्ग से संबद्ध होने का आरोप लगाते हुए सेवा से बर्खास्त किया गया था, जिसके खिलाफ उन्होंने मध्यप्रदेश ट्रिब्यूनल में मामला दायर किया था। छत्तीसगढ़ राज्य बनने और हाई कोर्ट की स्थापना के बाद यह मामला हाई कोर्ट में स्थानांतरित हो गया था।
अवमानना याचिका के रूप में हुई सुनवाई
मध्यप्रदेश ट्रिब्यूनल से छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट स्थानांतरित होने के बाद इस मामले को अवमानना याचिका के रूप में दर्ज किया गया और सुनवाई प्रारंभ हुई। राज्य शासन की ओर से जवाब पेश करने के लिए ला अफसरों की अनुपस्थिति में कोर्ट ने इसे एकतरफा निपटा दिया। कोर्ट के आदेश के बावजूद जब अब्दुल रहमान को बकाया वेतन नहीं मिला, तो उन्होंने 2006 में पुनः याचिका दायर की।
जस्टिस गौतम भादुड़ी की सिंगल बेंच ने इस याचिका को स्वीकार करते हुए राज्य शासन को लंबित वेतन और अन्य भत्तों का भुगतान करने का निर्देश दिया है।
मामले का संक्षिप्त विवरण
राजनांदगांव निवासी अब्दुल रहमान अहमद की नियुक्ति 31 अगस्त 1989 को जल संसाधन विभाग के मुख्य अभियंता कार्यालय, महानदी कछार में ट्रेसर के पद पर हुई थी। 16 अक्टूबर 1989 को उनकी सेवाएं अधीक्षण अभियंता कार्यालय में स्थानांतरित कर दी गईं। 19 अप्रैल 1991 को प्रमुख अभियंता के आदेश से चरित्र प्रमाण पत्र का सत्यापन किया गया और आनंद मार्ग संस्था का सदस्य होने का आरोप लगाते हुए उन्हें सेवामुक्त कर दिया गया।
