हाईकोर्ट ने पति को पत्नी की आत्महत्या के मामले में बरी किया

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धमतरी का मामला : अभियोजन आरोप साबित करने में नाकाम, अदालत ने कहा – कभी-कभी झगड़ा होना ‘क्रूरता’ की श्रेणी में नहीं आता

बिलासपुर:
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने पत्नी की आत्महत्या के मामले में धमतरी निवासी पवन प्रजापति को सभी आरोपों से बरी कर दिया है। न्यायमूर्ति नरेश कुमार चंद्रवंशी की एकलपीठ ने निचली अदालत द्वारा सुनाई गई सजा को निरस्त करते हुए कहा कि अभियोजन यह साबित नहीं कर सका कि आरोपी ने पत्नी को आत्महत्या के लिए उकसाया या उसके साथ ऐसी क्रूरता की, जिससे उसने आत्महत्या की हो।

यह मामला थाना सिहावा, जिला धमतरी का है। पवन प्रजापति की पत्नी बसंती बाई की 6 दिसंबर 2019 को घर में आग लगने से मृत्यु हो गई थी। पवन ने स्वयं पुलिस को सूचना दी थी कि उसकी पत्नी आग में जल गई है। पुलिस जांच में घटनास्थल से जले हुए कपड़े, टायर के टुकड़े, माचिस, मिट्टी तेल की बोतल आदि जब्त किए गए थे। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में डॉक्टर ने बताया कि मृतका के शरीर के 3 से 4 डिग्री तक जलने के कारण दम घुटने से उसकी मौत हुई।

मर्ग जांच के बाद पुलिस ने पवन के खिलाफ धारा 306 (आत्महत्या के लिए दुष्प्रेरण) और धारा 498ए (पत्नी के प्रति क्रूरता) के तहत मामला दर्ज किया था। आरोप था कि पवन शराब पीकर पत्नी से मारपीट करता था और यह कहता था कि वह सिर्फ बेटियां ही जन्म देती है। ट्रायल कोर्ट ने दिसंबर 2021 में उसे दोषी पाते हुए 5 साल की सजा (306) और 1 साल की सजा (498ए) सुनाई थी।

अपील में रखी गई दलीलें

अपील के दौरान बचाव पक्ष के अधिवक्ता डी.एन. प्रजापति ने दलील दी कि अभियोजन के पास कोई ठोस प्रमाण नहीं है कि पवन ने पत्नी को आत्महत्या के लिए उकसाया। मृतका ने कभी पुलिस में शिकायत नहीं की थी, और न ही बेटियों या अन्य परिजनों ने घर में गंभीर हिंसा की पुष्टि की। राज्य की ओर से पैनल लायर ने कहा कि पति का व्यवहार क्रूर था और उसकी वजह से मृतका मानसिक रूप से परेशान रहती थी।

हाईकोर्ट का विश्लेषण

अदालत ने गवाहों की गवाही, मेडिकल रिपोर्ट और सामाजिक परिस्थितियों का विश्लेषण करते हुए कहा कि मृतका की बेटियों और भाभी ने स्पष्ट कहा कि पति-पत्नी में झगड़े नहीं होते थे। मृतका के भाइयों ने केवल इतना कहा कि पवन शराब पीने के बाद कभी-कभी पत्नी को मारता था, पर यह नहीं बताया कि ऐसा कितनी बार हुआ।

कोर्ट ने कहा कि केवल शराब पीना या कभी-कभी झगड़ा करना “क्रूरता” या “आत्महत्या के लिए उकसाने” की श्रेणी में नहीं आता। सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व निर्णयों का हवाला देते हुए अदालत ने कहा कि केवल सामान्य पारिवारिक विवादों या मतभेदों के आधार पर व्यक्ति को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।

सजा निरस्त, आरोपी बरी

अदालत ने पाया कि अभियोजन अपने आरोप सिद्ध करने में असफल रहा है। इसलिए निचली अदालत का निर्णय रद्द करते हुए पवन प्रजापति को दोनों धाराओं (306 और 498ए) से बरी कर दिया गया। कोर्ट ने निर्देश दिया कि चूंकि आरोपी पहले से जमानत पर है, इसलिए उसे सरेंडर करने की आवश्यकता नहीं है। उसके जमानत बांड छह माह तक प्रभावी रहेंगे।