23 साल बाद रिश्वत के आरोप से मृत बैंक प्रबंधक को मिली राहत, हाई कोर्ट ने निचली अदालत का फैसला किया खारिज

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बिलासपुर:

सरकारी योजना के तहत बोरवेल खनन के लिए लोन स्वीकृत करने के एवज में रिश्वत लेने के आरोप से 23 साल बाद आखिरकार मृत बैंक प्रबंधक को राहत मिली है। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को खारिज कर दिया है, जिसने बैंक प्रबंधक को एक साल की सजा सुनाई थी। बैंक प्रबंधक ने इस सजा के खिलाफ 2003 में हाई कोर्ट में अपील दायर की थी, लेकिन अपील लंबित रहने के दौरान उनकी मृत्यु हो गई। इसके बाद उनकी पत्नी और बेटों ने मुकदमा को आगे बढ़ाया। 22 साल बाद हाई कोर्ट ने उन्हें रिश्वत के आरोप से बरी कर दिया है।

मामले का विवरण

दुर्ग निवासी राजेन्द्र कुमार यादव वर्ष 2000-2001 में कृषि एवं भूमि विकास बैंक, बेमेतरा शाखा में प्रबंधक के पद पर तैनात थे। उस दौरान नवागढ़ ब्लॉक के ग्राम एरमसाही निवासी किसान धीरेन्द्र कुमार शुक्ला ने अपने पिता राजेन्द्र नारायण शुक्ला के नाम से बोरवेल खनन के लिए सरकारी योजना के तहत लोन का आवेदन किया था। शाखा प्रबंधक राजेन्द्र कुमार यादव ने प्रोसेस शुल्क के रूप में 526 रुपये जमा करने को कहा।

हालांकि, किसान धीरेन्द्र कुमार शुक्ला ने शाखा प्रबंधक पर रिश्वत मांगने का आरोप लगाते हुए लोकायुक्त रायपुर में शिकायत दर्ज कराई। मई 2001 में लोकायुक्त की टीम ने शिकायतकर्ता को केमिकल लगे नोटों के साथ बैंक भेजा और ट्रैप कार्रवाई में शाखा प्रबंधक को हिरासत में ले लिया। इसके बाद उनके खिलाफ विशेष अदालत में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत मामला चलाया गया, जिसमें निचली अदालत ने उन्हें छह महीने की कैद और 500 रुपये जुर्माना, साथ ही धारा 13 (डी) (1) के तहत एक साल की कैद और 500 रुपये जुर्माने की सजा सुनाई थी।

हाई कोर्ट में अपील

राजेन्द्र कुमार यादव ने निचली अदालत के फैसले के खिलाफ 2003 में हाई कोर्ट में अपील दायर की, लेकिन लंबी प्रक्रिया के दौरान उनकी मृत्यु हो गई। इसके बाद उनकी पत्नी उत्तम कुमारी यादव और पुत्र प्रशांत यादव व निशांत यादव ने इस मुकदमे को आगे बढ़ाया। आखिरकार 22 साल बाद, अगस्त 2024 में हाई कोर्ट में इस मामले की अंतिम सुनवाई हुई।

हाई कोर्ट का निर्णय

हाई कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान पाया कि शिकायतकर्ता ने बैंक प्रबंधक को प्रोसेस शुल्क के रूप में 526 रुपये दिए थे और ट्रैप टीम ने उनके पास से 100-100 रुपये के चार नोट बरामद किए थे। हालांकि, प्रतिपरीक्षण में यह बात सामने आई कि अपीलकर्ता के जेब से सात-आठ नोट बरामद हुए थे और रिश्वत के रूप में दिए गए नोटों के नंबर दर्ज नहीं थे। इसके अलावा, बैंक प्रबंधक ने अपने बचाव में प्रोसेस शुल्क की रसीद भी प्रस्तुत की थी, जो शिकायतकर्ता को दी गई थी। हाई कोर्ट ने इन तथ्यों के आधार पर निचली अदालत के फैसले को खारिज कर दिया और मृत बैंक प्रबंधक राजेन्द्र कुमार यादव को रिश्वत के आरोप से बरी कर दिया।