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बिलासपुर:
अपनी पत्नी और तीन बच्चों की निर्मम हत्या करने वाले उमेंद्र केंवट को दशम सत्र न्यायाधीश अविनाश के. त्रिपाठी ने फांसी की सजा सुनाई है। यह सजा तब तक जारी रहेगी जब तक उसकी मृत्यु नहीं हो जाती। जिले में 13 वर्षों बाद किसी आरोपी को मृत्युदंड की सजा सुनाई गई है। इससे पहले, वर्ष 2011 में रतनपुर के एक व्यक्ति को मृत्युदंड दिया गया था। इस मामले में पुलिस और न्यायालय की त्वरित कार्यवाही के चलते, आरोपी को उसके अपराध के लिए जल्द सजा दी जा रही है।
घटना के तीन माह के भीतर ही पुलिस ने मामले में चालान पेश कर दिया था, और इसके बाद मात्र सात माह में न्यायालय ने अपना फैसला सुनाया। न्यायालय ने आरोपी को 10 हजार रुपये का अर्थदंड भी लगाया है, जिसे न पटाने पर तीन माह की अतिरिक्त कारावास की सजा भुगतनी होगी। अभियोजन पक्ष की ओर से इस मामले में अतिरिक्त लोक अभियोजक लक्ष्मीकांत तिवारी और अभिजीत तिवारी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
पुलिस की जांच में पता चला कि उमेंद्र ने अपनी पत्नी और बच्चों की हत्या के बाद खुद भी आत्महत्या का प्रयास किया था। उसने रस्सी से फांसी लगाने की कोशिश की, लेकिन रस्सी टूटने से वह जीवित बच गया। इसके बाद, वह मस्तूरी थाने पहुंचा और सरेंडर करते हुए अपने अपराध की जानकारी दी।
मामले की संक्षिप्त जानकारी:
घटना एक जनवरी की रात की है, जब उमेंद्र ने अपनी पत्नी और बच्चों की हत्या कर दी। अगले दिन, दो जनवरी को वह मस्तूरी थाने पहुंचा और अपने अपराध की सूचना दी। पुलिस मौके पर पहुंची और शवों का पंचनामा कर पोस्टमार्टम कराया। जांच के दौरान, पुलिस ने आरोपी और उसके परिवार के सदस्यों के बयान दर्ज किए और आवश्यक साक्ष्य जुटाए। मार्च के अंत में अदालत में चालान पेश किया गया।
साक्ष्य और गवाहों के आधार पर सजा:
सुक्रिता और उसके तीन बच्चों की हत्या के मामले में दशम अपर सत्र न्यायाधीश अविनाश के. त्रिपाठी की अदालत में चार माह तक सुनवाई हुई। इस दौरान, न्यायालय में रिश्तेदारों, पोस्टमार्टम करने वाले चिकित्सक, वीडियोग्राफर और विवेचना अधिकारी का बयान दर्ज किया गया। पुलिस द्वारा पेश किए गए साक्ष्य और गवाहों के बयान के आधार पर, न्यायाधीश ने उमेंद्र को फांसी की सजा और 10 हजार रुपये के अर्थदंड की सजा सुनाई।
2011 में भी सुनाई गई थी फांसी की सजा:
फरवरी 2011 में, रतनपुर निवासी मनोज सूर्यवंशी ने पड़ोसी के तीन बच्चों की हत्या कर दी थी और शवों को खेत में फेंक दिया था। हत्या के पीछे मनोज की पत्नी के भाग जाने की घटना को मुख्य कारण माना गया था। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने बाद में मनोज की फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया था।
