संयुक्त राष्ट्र के शांति प्रयासों पर आईपीएस डॉ. संतोष सिंह की किताब प्रकाशित

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मुख्यमंत्री, विधानसभा अध्यक्ष और डीजीपी को भेंट की प्रति

रायपुर:
छत्तीसगढ़ पुलिस के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी व डीआईजी (सीसीटीएनएस/एससीआरबी) के रूप में पदस्थ आईपीएस डॉ. संतोष कुमार सिंह की नवीनतम पुस्तक “संयुक्त राष्ट्र के शांति सुदृढ़ीकरण प्रयास” (United Nations Peacebuilding Efforts) का प्रकाशन दिल्ली के प्रतिष्ठित मानक पब्लिकेशन द्वारा किया गया है। यह पुस्तक वैश्विक शांति, अंतरराष्ट्रीय संबंधों और संयुक्त राष्ट्र के बहुआयामी शांति मिशनों पर आधारित एक गहन और शोधपरक अध्ययन प्रस्तुत करती है।

मुख्यमंत्री विष्णु देव साय को पुस्तक भेंट करते हुए डीआईजी डॉ. संतोष कुमार सिंह

पूर्व मुख्यमंत्री व वर्तमान विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह को पुस्तक भेंट करते हुए डीआईजी डॉ. संतोष कुमार सिंह

प्रदेश के पुलिस महानिदेशक अरुणदेव गौतम को पुस्तक की प्रति भेंट करते हुए डीआईजी डॉ. संतोष कुमार सिंह

डॉ. सिंह वर्तमान में पुलिस मुख्यालय रायपुर में डीआईजी, सीसीटीएनएस/एससीआरबी के पद पर पदस्थ हैं। उन्होंने पुस्तक की प्रति मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय, विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह और पुलिस महानिदेशक अरुण देव गौतम को भेंट की। इस अवसर पर सभी गणमान्य व्यक्तियों ने उनके कार्य की सराहना करते हुए कहा कि यह पुस्तक न केवल अंतरराष्ट्रीय शांति की दिशा में भारत की भूमिका को रेखांकित करती है बल्कि आने वाली पीढ़ी के नीति-निर्माताओं और शोधार्थियों को एक नया दृष्टिकोण भी प्रदान करती है।


शांति स्थापना से आगे बढ़कर ‘शांति निर्माण’ की अवधारणा

पुस्तक में शीत युद्ध के बाद के वैश्विक परिदृश्य और बदलते अंतरराष्ट्रीय संतुलन के बीच संयुक्त राष्ट्र के शांति अभियानों की भूमिका का विश्लेषण किया गया है। डॉ. सिंह ने इसमें बताया है कि कैसे पारंपरिक पीसकीपिंग (Peacekeeping) और पीसमेकिंग (Peacemaking) की सीमाओं से आगे बढ़ते हुए, अब अंतरराष्ट्रीय समुदाय पीसबिल्डिंग (Peacebuilding) यानी शांति निर्माण और सुदृढ़ीकरण की दिशा में काम कर रहा है।

इस सदी में संयुक्त राष्ट्र द्वारा गठित यूएन पीसबिल्डिंग कमीशन (UN Peacebuilding Commission) संघर्षग्रस्त और युद्ध से तबाह देशों में लोकतांत्रिक संस्थाओं को सुदृढ़ करने, शासन व्यवस्था को स्थिर करने और समाज में पुनर्समायोजन लाने के कार्य कर रहा है। डॉ. सिंह की यह किताब इन प्रयासों का सैद्धांतिक और व्यावहारिक, दोनों ही दृष्टि से समालोचनात्मक अध्ययन प्रस्तुत करती है।


भारत की गौरवपूर्ण भूमिका और अनुभव

भारत, संयुक्त राष्ट्र के शांति अभियानों में लंबे समय से सक्रिय और सबसे भरोसेमंद साझेदारों में से एक है। पुस्तक में उल्लेख किया गया है कि 1950 से अब तक भारत ने 49 शांति मिशनों में भाग लिया है और लगभग 2 लाख भारतीय सैनिकों और पुलिस अधिकारियों ने इन अभियानों में अपनी सेवा दी है। वर्तमान में भी भारतीय अधिकारी अफ्रीका, एशिया और मध्य पूर्व के कई देशों में संयुक्त राष्ट्र के बैनर तले शांति स्थापना और पुनर्निर्माण के कार्यों में योगदान दे रहे हैं।

डॉ. सिंह ने अपनी पुस्तक में भारत की इस भूमिका को विस्तार से रेखांकित करते हुए लिखा है कि भारतीय शांतिसैनिकों की निष्ठा, मानवीय दृष्टिकोण और पेशेवर दक्षता ने संयुक्त राष्ट्र मिशनों में भारत की छवि को और भी सशक्त बनाया है।


देश के भीतर शांति की राह में उपयोगी दृष्टिकोण

पुस्तक में यह भी विवेचना की गई है कि वैश्विक स्तर पर शांति निर्माण की जो अवधारणा विकसित हुई है, वह भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण लोकतंत्र के लिए भी प्रासंगिक है। देश के अंदर के हिंसाग्रस्त या संवेदनशील क्षेत्रों में स्थायी शांति स्थापित करने के लिए इस मॉडल के कई तत्व उपयोगी हो सकते हैं — जैसे समुदाय आधारित संवाद, स्थानीय शासन की भागीदारी, सामाजिक पुनर्वास और संस्थागत स्थिरता का निर्माण।


शैक्षणिक उपलब्धियां और बौद्धिक योगदान

डॉ. संतोष सिंह ने हेमचंद यादव विश्वविद्यालय, दुर्ग से डॉक्टरेट (Ph.D.) की उपाधि प्राप्त की है। इससे पहले उन्होंने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU), नई दिल्ली से अंतरराष्ट्रीय संबंधों में एमफिल तथा बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU), वाराणसी से राजनीति विज्ञान में एमए किया। एमफिल के दौरान उनका शोध विषय “संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में विकासशील देशों की भागीदारी” था, जिसने आगे चलकर उनके इस पुस्तक लेखन की वैचारिक नींव रखी। उनके कई शोध-पत्र देश और विदेश के प्रतिष्ठित जर्नलों में प्रकाशित हुए हैं।


अंतरराष्ट्रीय संबंधों के विद्यार्थियों के लिए उपयोगी ग्रंथ

यह पुस्तक अंतरराष्ट्रीय संबंधों, कूटनीति, विदेश नीति और रक्षा अध्ययन के शोधार्थियों के लिए एक उपयोगी संदर्भ ग्रंथ के रूप में उभरेगी। इसमें संयुक्त राष्ट्र के ढांचे के भीतर किए जा रहे संस्थागत सुधारों, सदस्य देशों की नीति-गत प्राथमिकताओं और शांति अभियानों की व्यवहारिक चुनौतियों पर गहन विवेचना की गई है।