डीएनए जांच नहीं कराई, कोर्ट से मिली रिहाई : गैंगरेप के आरोप में उम्रकैद काट रहे दो युवक 6 साल बाद बरी

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वैज्ञानिक जांच की चूक से अभियोजन की फजीहत

मूक-बधिर किशोरी के दुष्कर्म मामले में हाईकोर्ट ने सुनाया बड़ा फैसला

बिलासपुर: जशपुर क्षेत्र में मूक-बधिर किशोरी के साथ सामूहिक दुष्कर्म के मामले में 20-20 साल की सजा काट रहे दो युवकों को छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने बरी कर दिया है। कोर्ट ने अभियोजन पक्ष की बड़ी लापरवाही उजागर करते हुए कहा कि पीड़िता के गर्भवती होने के बावजूद डीएनए जांच नहीं कराई गई, जिससे आरोपियों की संलिप्तता सिद्ध नहीं हो सकी। न्यायालय ने इसे न्याय में गंभीर त्रुटि मानते हुए दोनों युवकों को संदेह का लाभ देते हुए रिहा कर दिया। मुख्य न्यायाधीश राजनी दुबे और न्यायमूर्ति अमितेन्द्र किशोर प्रसाद की खंडपीठ ने यह महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया।


मामले का पूरा घटनाक्रम

जशपुर जिले की मूक-बधिर किशोरी (15 वर्ष) के गर्भवती होने की जानकारी मिलने पर परिजनों ने पूछताछ की। इशारों में हुई बातचीत में किशोरी ने गांव के ही सुरज कुजूर, सुरेश राम और दीपक एक्का (अब मृत) पर दुष्कर्म का आरोप लगाया।

परिजनों ने 9 जुलाई 2017 को कुकरी थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई। मेडिकल परीक्षण में पीड़िता के पांच माह की गर्भवती होने की पुष्टि हुई। पुलिस ने सामूहिक दुष्कर्म (आईपीसी 376डी), पाक्सो एक्ट और एससी/एसटी एक्ट के तहत चालान पेश किया। विशेष न्यायाधीश, जशपुर ने सुरज कुजूर और सुरेश राम को दोषी करार देते हुए 20-20 साल की सश्रम कारावास की सजा सुनाई थी।


हाईकोर्ट में क्या हुआ-

अपील पर सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने अभियोजन की जांच प्रक्रिया में गंभीर खामियां पाईं:

पीड़िता की उम्र साबित नहीं कर पाया अभियोजन-स्कूल के दस्तावेजों में दर्ज जन्मतिथि (21.01.2002) का कोई पुख्ता प्रमाण नहीं था। दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करने वाले प्रधानाध्यापक भी यह नहीं बता सके कि यह जन्मतिथि किस आधार पर दर्ज की गई थी।

पीड़िता का बयान प्रक्रिया अनुसार दर्ज नहीं हुआ– पीड़िता मूक-बधिर थी और उसका बयान इशारों और कागज पर लिखकर लिया गया। बयान के दौरान विशेषज्ञ की सहायता ली गई थी, लेकिन उन्हें गवाही के लिए कोर्ट में प्रस्तुत नहीं किया गया। पीड़िता के बयान की वीडियो रिकॉर्डिंग भी नहीं कराई गई, जो कानूनन अनिवार्य है।

डीएनए जांच नहीं कराना अभियोजन की सबसे बड़ी चूक-पीड़िता के गर्भवती होने के बावजूद आरोपियों और शिशु का डीएनए परीक्षण नहीं कराया गया। कोर्ट ने इसे अभियोजन की सबसे बड़ी लापरवाही बताते हुए कहा कि इससे मामला संदेहास्पद बन गया है।

मेडिकल रिपोर्ट भी रही कमजोर

मेडिकल रिपोर्ट में यह तो पुष्टि हुई कि पीड़िता गर्भवती थी, लेकिन उसके शरीर पर किसी तरह की चोट या दुष्कर्म के निशान नहीं पाए गए। मेडिकल अधिकारियों ने स्पष्ट किया कि पीड़िता का यौनिक विकास पूर्ण था, परंतु घटना के समय कोई बाहरी चोट नहीं थी।


कोर्ट ने क्या कहा

कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपियों के खिलाफ कोई निर्णायक और ठोस साक्ष्य प्रस्तुत नहीं कर सका है। पीड़िता का बयान विधिसम्मत तरीके से दर्ज नहीं हुआ और डीएनए जांच जैसी वैज्ञानिक जांच न कराना अभियोजन की गंभीर चूक है। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि वैज्ञानिक साक्ष्य के अभाव में केवल आरोप के आधार पर किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।


कोर्ट का फैसला –

कोर्ट ने सुरज कुजूर और सुरेश राम को सामूहिक दुष्कर्म के आरोप से दोषमुक्त कर दिया। साथ ही 25,000-25,000 रुपये के मुचलके पर 6 माह तक सुप्रीम कोर्ट में अपील की स्थिति में उपस्थित रहने का निर्देश दिया गया है।


कोर्ट ने अभियोजन को फटकारा

कोर्ट ने कहा कि गंभीर मामलों में वैज्ञानिक साक्ष्य, विशेषकर डीएनए परीक्षण, न्याय प्रक्रिया की रीढ़ होते हैं। यदि अभियोजन पक्ष ऐसे साक्ष्यों की अनदेखी करेगा तो दोषी बच निकलेंगे और निर्दोष सजा भुगतेंगे। डीएनए टेस्ट न कराना अभियोजन की बड़ी कमजोरी है और इसके पीछे कोई उचित कारण नहीं बताया गया। इतने संवेदनशील मामले में वैज्ञानिक साक्ष्य की उपेक्षा अभियोजन के खिलाफ जाती है।

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